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🩸 #आरती_विज्ञान 🩸
जगत पांच तत्त्वों से निर्मित है - वही पांच तत्त्व हर रुप में समा ये हैं - फिर वे चाहे पांच कर्मेन्द्रिय हों - या पांच ज्ञानेन्द्रिय- या अंतःकरण पंचक - तन्मात्रा पंचक - या ईश्वर कोटि रुप पांच देव आदि -- वहीं आरती भी उन पांच तत्त्वों से अछूती नहीं ---
जगत निर्माण में आत्मा से आकाश - आकाश से वायु से अग्नि - अग्नि से जल - और जल से पृथ्वी की व्युत्पत्ति का क्रम है - यही क्रम ईश्वर आराधन रुप आरती का भी है --
आरती में पर्दा खुलते ही सर्वप्रथम आत्मस्वरूप ईश्वर को देखते हैं -- उसके पश्चात् आत्मा से प्रथम उत्पन्न आकाश के शब्द गुण रूप शंख को फूंका जाता है -- फिर दूसरे तत्त्व वायु का प्रतीक चंवर ढुलता है या वस्त्र से इस क्रिया का प्रदर्शन होता है -- पुनः तीसरे तत्त्व अग्नि व धूप से आरती होती है -- इसके अनन्तर चौथा तत्त्व जल का प्रदर्शन कुंभारती व जल युक्त शंख के रूप में होता है -- अंत में पांचवें तत्त्व पृथ्वी का प्रदर्शन अर्चक अपनी अंगुली अंगुष्ठादि अंगों द्वारा मुद्राऐं दिखाता हुआ करता है या उसके स्थान पर हाथ जोडता है -- पश्चात् इस प्रक्रिया का विलोम है ---
अब प्रश्न है कि आरती को कैसे और कितनी बार घुमाएं ---
जिस देवता की आरती करने चलें -- उसी देवता का बीजमंत्र- स्नान स्थाली - नीराजन स्थाली - घण्टिका - और जल कमण्डलु आदि पात्रों पर चन्दन आदि से लिखना चाहिए-- फिर आरती के द्वारा भी उसी बीजमंत्र को देव प्रतिमा के सामने बनाना चाहिए-- यदि कोई व्यक्ति तत्तद देवताओं के विभिन्न बीजमंत्रों का ज्ञान न रखता हो तो सर्व वेदों के बीजभूत प्रणव ऊँकार को ही लिखना चाहिए अर्थात् आरती को ऐसे घुमाना चाहिए कि ऊँ वर्ण की आकृति उस दीपक द्वारा बन जाये ----
शास्त्र में जिस देवता की जितनी संख्या लिखी हो - उतनी बार ही आरती घुमानी चाहिए - जैसे भगवान विष्णु आदित्यों में परिगणित होने के कारण द्वादशात्मा माने गये हैं - इसलिए उनकी तिथि भी द्वादशी है और मंत्र भी द्वादशाक्षर है अतः विष्णु की आरती में बारह आवर्तन आवश्यक है ---
सूर्य सप्त रश्मि है - सात रंग कि विभिन्न किरणों वाले - सात घोडों से युक्त रथ में सवार - सप्तमी तिथि का अधिष्ठाता हैं -- सूर्य आरती में सात बार बीजमंत्र उद्धार करना आवश्यक है ---
दुर्गा की नव संख्या प्रसिद्ध है - नवमी तिथि है - नवाक्षर मंत्र है अतः नौ बार आरती का आवर्तन होना चाहिए-- एकादश रुद्र हैं अथवा शिव जी चतुर्थी तिथि के अधिष्ठाता है - अतः ११ या १४ आवर्तन आवश्यक हैं -- गणेश जी चतुर्थी तिथि के अधिष्ठाता हैं - इसलिए चार आवर्तन होना चाहिए ---
इसी प्रकार मंत्र संख्या या तिथि आदि के अनुरोध से अन्यान्य देवताओं के लिए भी कल्पना कर लेनी चाहिए --
अथवा सभी देवताओ के लिए सात बार भी साधारणतया किया जाता है - जिस में चरणों में चार बार - नाभी में दो बार और मुख पर एक बार फिर सर्वांग पर सात बार आरती करें -----
🚩 हर हर महादेव 🚩