
**गुजरात के विशेष जन्माष्टमी उत्सवों ने भक्ति, संस्कृति और आनंद की लहर से आर्ट ऑफ लिविंग इंटरनेशनल सेंटर में धूम मचाई”
बेंगलुरु, 18 अगस्त, 2025: आर्ट ऑफ लिविंग इंटरनेशनल सेंटर इस सप्ताहांत रंगों, संगीत और भक्ति से जीवंत हो उठा, जब गुजरात से आये हजारों श्रद्धालु जन्माष्टमी मनाने के लिए गुरुदेव श्री श्री रविशंकर की पावन उपस्थिति में एकत्र हुए। दो दिनों तक चले इस भव्य उत्सव में नृत्य, संगीत, सत्संग और भव्य अन्नकूट के माध्यम से श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव उल्लासपूर्वक मनाया गया।
अपने जन्माष्टमी संदेश में गुरुदेव ने कहा, “कृष्ण अर्जुन को कदम दर कदम मार्गदर्शन देते हैं और अंत में कहते हैं, सब कुछ त्याग कर केवल मेरी शरण में आओ।” उन्होंने सभी को स्मरण कराया कि शांति और आनंद संघर्ष से नहीं, बल्कि समर्पण से प्राप्त होते हैं। श्रीकृष्ण के चिरस्थायी संदेश को साझा करते हुए गुरुदेव ने डेनमार्क की एक जेल का उदाहरण दिया, जहाँ एक कैदी ने पूछा कि क्या उसके पाप कभी क्षमा हो सकते हैं। इस पर गुरुदेव ने उत्तर दिया, “यदि तुम इस मार्ग पर चलोगे, तो शीघ्र ही एक पुण्य आत्मा बन जाओगे। जब तुम परमात्मा, भक्ति और ध्यान से जुड़ते हो तो तुम जल्दी ही धर्मात्मा बन जाते हो। यह अधिक समय नहीं लेता, जैसे कि बहुत समय से अंधकार में रहे कमरे को रोशनी से भरने में देर नहीं लगती।”
16 अगस्त की जन्माष्टमी की शाम को आश्रम गरबा की तालों से गूंज उठा। गुरुदेव का पारंपरिक रूप से स्वागत किया गया, इसके पश्चात भव्य महाआरती हुई, जिससे आश्रम का सुरम्य एम्फीथिएटर सुनहरी आभा में नहा उठा।
भगवान श्रीकृष्ण के सार को बताते हुए गुरुदेव ने कहा, “कृष्ण की सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि बहुत लोग उन्हें केवल एक मनुष्य के रूप में देखते थे। वे कहते थे, ‘मोहग्रस्त लोग मुझे एक सामान्य मनुष्य समझते हैं, वे मुझे परम चेतना के रूप में नहीं पहचानते। जहाँ कहीं भी सत्य है, वहाँ मैं हूँ। जहाँ सौंदर्य है, वह सौंदर्य मैं हूँ। जहाँ शक्ति है, वह शक्ति मैं हूँ। योद्धाओं में मैं कार्तिकेय हूँ, आदित्यों में मैं सूर्य हूँ।'”
17 अगस्त को उत्सव की पराकाष्ठा तब हुई जब भव्य अन्नकूट उत्सव आयोजित किया गया, जिसमें 2400 से अधिक व्यंजन थे, जिनमें 700 से अधिक ताजे पकवान शामिल थे, जो भक्ति भाव से अर्पित किए गए। सुसज्जित रूप से सजाए गए व्यंजनों की पंक्तियाँ दर्शनीय दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं।
उत्सव में 30 त्रि-आयामी झांकियाँ भी प्रस्तुत की गईं, जिनमें श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं से लेकर कुरुक्षेत्र की ज्ञान गाथा तक के दृश्य जीवंत हो उठे। यशोदा माँ द्वारा नटखट कृष्ण को दौड़ाकर पकड़ने जैसी लघु मूर्तियाँ दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बनीं।
इस भक्ति-उत्सव के साथ-साथ आयोजित गुजरात विशेष रिट्रीट्स में 1,500 से अधिक प्रतिभागियों ने गहन मौन, ध्यान और आध्यात्मिक ज्ञान में डुबकी लगाई। कई लोगों के लिए यह अनुभव एक साथ आंतरिक शांति और बाह्य उल्लास की यात्रा बन गया।
बांधनी और चन्या चोली पहने श्रद्धालुओं से आश्रम गुजरात के पारंपरिक रंगों में रंग गया था। लेकिन इस उत्सव की सबसे गूंजती हुई स्मृति गुरुदेव का यह संदेश बना-
“तुम और मैं अलग नहीं हैं। जल में, धरती पर, आकाश में, कृष्ण हर जगह हैं।”